माटी के काया

माटी के काया ल आखिर माटी म मिल जाना हे।
जिनगी के का भरोसा,कब सांस डोरी टूट जाना हे।
सांस चलत ले तोर मोर सब,जम्मो रिश्ता नाता हे।
यम के दुवारी म जीव ल अकेला चलते जाना हे।
धन दोगानी इंहे रही जही,मन ल बस भरमाना हे।
चार हांथ के कंचन काया ल आगी मे बर जाना हे।
समे राहत चेतव-समझव,फेर पाछू पछताना हे।
मोह-माया के छोड़के बंधना,हंसा ल उड जाना हे।
नाव अमर करले जग मे,तन ल नाश हो जाना हे।
सुग्घर करम कमाले बइहा,फेर हरि घर जाना हे।
रीझे यादव
टेंगनाबासा(छुरा)

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2 Thoughts to “माटी के काया”

  1. केजवा राम साहू 'तेजनाथ'

    अब्बड़ सुघ्घर

  2. Hem

    Ati Sundar Haway

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